स्वर्णमुखी छंद
स्वर्णमुखी छंद
स्वर्णमुखी मधु गीत सुहावन, अति प्रिय मधुमय भाव।
उत्तम प्रियमय रूप, बहता सहज सुगंध अपारा।
चौदह पद की यह रचना है,छोड़त दिव्य प्रभाव।
मोहनीय विस्तार, इस पर मोहित यह संसारा।
सुमुखी सहज सलोनी कविता, रूपसि सरल महान।
दिव्य गगन है धाम, चौदह भुवन चला करती है।
सरसी -सरसिज शिव मनभावन, समरस सरस विधान।
शेक्सपियर का भाव, छंद विधा सुंदर लगती है।ll
गीत बहुत मनमोहक अनुपम, कंचन इसका देह।
खुश होता संसार, अद्वितीय इसकी संरचना।
रचनाकारों का यह जीवन, स्वर्णमुखी प्रिय गेह।
रचना यह अनमोल, पावन करती इसकी वचना।
स्वर्णमुखी कविता जो लिखता,कहलाता विद्वान।
सभी पदों से टपकाता हैं,कमल-सुमोहक ज्ञान।
सीताराम साहू 'निर्मल'
07-Feb-2023 07:10 PM
👏👍🏼
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अदिति झा
03-Feb-2023 11:33 AM
Nice 👍🏼
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Gunjan Kamal
02-Feb-2023 11:26 AM
बहुत खूब
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